"वर दे!" (डॉ. विद्या सागर कापड़ी)
>> Sunday, 6 March 2011 –
वन्दना
![]() ![]() वर दे । वर दे..........। वर दे वर दे मातु सरस्वती । वर दे...........। श्वेत वसन सुरमय वीणा कर , तिमिरपुंज हर हे ज्योतिर्मय । पग पर शूल बनें बाधा जब , सुरभ सुमन कर दे। वर दे ..........। दंभ कपट से दूर रहे तन , पल.पल श्वेत धवल सा हो मन । ज्ञानहीनता की तलछट को , हे हंसवाहिनी हर दे । वर दे........ । अधरों से पुष्प प्रस्फुटित हो , कर से नित नव काब्य रचित हो । रस छन्दों से सींचित करके, काब्यभाव भर दे । वर दे.......। |
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